व्यंग्य कविता
दहेज बनाम दान!
कुछ ऐसे लोग हैं
जो गलियों में भॅूकते हैं
लोग उनके नाम पर थूकते हैं
फिर भी उन्हें परवाह नहीं
किसी की चाह नहीं
बेटे को बेचकर मुस्कराते हैं
दूसरों पर रंग जमाते हैं
कहते हैं, मैंने दहेज कहां लिया?
यह तो दान है
और दान लेने में
हमारा क्या अपमान है?
डॉ.एस.आनंद
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