‘ख़ाकी’ की कलम से ‘गज़ल’ की गली (4)

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मुरलीधर शर्मा ‘तालिब’, संयुक्त पुलिस आयुक्त (अपराध), कोलकाता पुलिस

गजल संग्रह : हासिल-ए-सहरा नवर्दी

मुन्सिफ़ से क्या आस लगाया करता है
अब जो करता है सरमाया करता है

चेहरों के अंदर पोशीदा चेहरे हैं
देखो आईना दिखलाया करता है

कैसे-कैसे पेड़ झुलसते जाते हैं
बूढ़ा बरगद अब भी साया करता है

चुपके से आ जाती है तन्हाई बस
मेरे घर पर अब कौन आया करता है

ग़ज़लें कहना कब आसाँ है ऐ ‘तालिब’
आते-आते ये फ़न आया करता है

– मुरलीधर शर्मा ‘तालिब’, संयुक्त पुलिस आयुक्त (अपराध), कोलकाता पुलिस

कुछ शब्दों के अर्थ : सरमाया – धन। फ़न – कला।

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