ओशो की नजर से आध्यात्म की राह
मैं किसी आंदोलन का हिस्सा नहीं हूँ। जो भी कर रहा हूँ, वह शाश्वत है। यह तब से जारी है जब प्रथम पुरुष पृथ्वी पर आया और यह अंतिम तक जारी रहेगा। यह कोई आंदोलन नहीं, यह विकास का केन्द्र बिन्दु है…
मैं मनुष्य के विकास की शाश्वत प्रक्रिया का हिस्सा हूँ। सत्य की खोज न तो न नई है, न पुरानी। स्वंय के प्रति तुम्हारी खोज समय का हिस्सा नहीं है। मैं चला जाउंगा, पर जो मैं कर रहा हूँ, वह जारी रहेगा। कोई और उसे करेगा। जब मैं यहाँ नहीं था, तब भी कोई और उसे कर रहा था। इसका कोई संस्थापक नहीं, कोई अगुआ नहीं। यह एक इतनी बड़ी घटना है कि अनेक बुद्ध आये, मार्गदर्शन दिया और विदा हो गये। पर उनकी सहायता से मानवता थोड़ी और ऊँची चढ़ी, मनुष्यता थोड़ी और बेहतर हुई, मनुष्य थोड़ा और अधिक हुआ। उन्होंने संसार को थोड़ा और सुंदर बनाया, जैसा उन्होंने पाया था। इससे अधिक अपेक्षा उचित नहीं है। यह संसार बहुत विशाल है, अकेला व्यक्ति बहुत छोटा है। यदि वह इस तस्वीर में थोड़ा अपना हिस्सा भी जोड़ सके जो कि लाखों वर्षों से विकासमान है, तो इतना काफी है। केवल थोड़ा सा टच….थोड़ा सा अंशदान, थोड़ी सी समझ चाहिये। मैं किसी आंदोलन और रिवाज का हिस्सा नहीं। मैं शाश्वत का हिस्सा हूँ और तुम्हें भी शाश्वत का हिस्सा बनते देखना पसंद करूँगा, क्षणिक का नहीं।