सच बनाम झूठ
अगर मेरे पिता
जीवित होते आज
तो मैं उनसे पूछता
किस उसूल की बातें
करते थे आप?
कहते थे-
सच की विजय होती है सदैव
झूठ पराजित होता है बार-बार
मगर यहां तो सब
उल्टा-पुल्टा हो रहा है
झूठ घोड़े बेचकर
बेख़ौफ़ सो रहा है
और सच
पुक्का फाड़कर रो रहा है।
● डॉ. एस. आनंद, वरिष्ठ साहित्यकार, कथाकार, पत्रकार, व्यंग्यकार
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