पत्नी का मंतव्य
मैं अपने घर की छत पर
कृष्ण की प्रेमकथा बता रहा था
किन्तु मेरी संगिनी के मन को
कुछ दूसरा ही दर्द सता रहा था।
जैसे ही मैंने कहा-राधा
उसनेे अपना लक्ष्य साधा
जोर से बोली-
हे सूखे हुए गेंदे के फूल
तुम अपना ज्ञान गये हो भूल
तुम्हारी मैं ही हूं राधा।
और आज के दौर में भी
तुम हो मेरे बिना आधा
तुम मेरी कथा कहो
मेरे दुख-सुख को सहो।
जितना कहती हूं उतना ही करो
पड़ोसी गोपियों पर मत मरो
यह कलियुग है
और आज की नारी
एक आग का गोला है
कभी शबनम है तो कभी
दहकता हुआ शोला है।
अब कृष्णकथा करो बन्द
और मेरी तारीफ में
जल्दी से सुनाओ
कुछ प्रेम पगे छन्द।
● डॉ. एस. आनंद, वरिष्ठ साहित्यकार, कथाकार, पत्रकार, व्यंग्यकार
यह भी पढ़ें : डॉ. एस. आनंद की कलम से व्यंग्य कविता ‘आ अब लौट चलें!’
Advertisement