गूंगे और बहरे!
एक कवि मंच पर
अपनी ताबड़तोड़ तीन
हिट कविताएं सुनाने के बाद
संचालक के कान में
धीरे से कहा-
क्यों भाई!
मैंने तीन कविताएं सुनायीं
मगर कहीं से तालियों की
आवाज नहीं आयी।
संचालक ने कहा-
आप कवि हैं या सिरफिरे हैं
देखते नहीं
जो श्रोता बैठे हैं
वे सभी गूंगे और बहरे हैं।
● डॉ. एस. आनंद, वरिष्ठ साहित्यकार, कथाकार, पत्रकार, व्यंग्यकार
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