बीवी का शाप!
आज घरवाली उखड़ गई
व्यर्थ ही मुझसे लड़ गई
बोली गरजकर-
दिन-रात मोबाइल में
सर हो खपाते
दो रुपए कमाकर
कहीं से न लाते।
कैसे चलाती हूं मैं चूल्हा-चौका
ऊपर से देते हो रोज मुझे छौंका
इतने बेशरम ह़ो कि
शरम भी लजाती
मगर अक्ल तेरी ठिकाने न आती।
काहे बने हो तुम बेहया के जंगल?
देती हूं शाप तेरा होगा न मंगल
जिस घर में औरत बिलखती रहेगी
उस घर में बरकत कभी ना टिकेगी।
● डॉ. एस. आनंद, वरिष्ठ साहित्यकार, कथाकार, पत्रकार, व्यंग्यकार
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