बन्दर के हाथ कटार
बन्दरों के हाथ लगीं
जब से हैं कुछ कटारें
बढ़ गये हैं हादसों के दौर
अपने देश में।
हाथियों की पीठ पर
लदने लगी है खाद
भेड़िए भी हो गये हैं
सिंह शावक वेश में।
कब तलक ईमानदारी की
दुहाई देगा वह
भ्रष्टाचारी अब हवाएं
घुस गयीं दरवेश में।
बढ़ रहे हैं देश में
जयचंद और जाफर कई
लिख रहे हैं देश की
तकदीर शेष-विशेष में।
● डॉ. एस. आनंद, वरिष्ठ साहित्यकार, कथाकार, पत्रकार, व्यंग्यकार
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