बदल गया बंगाल!
दादाजी ने बताया था
बेटा यह है बंगाल
यहां कलाकारों का
नहीं है अकाल।
पर आज मेरी आंखों से
छंट गया अंधकार
गलत हो गया बेचारा क्या
वह लोकगीतकार
जिसने कभी लिखा था-
आगे है बंगाल
बोस बाबू के नगरिया
जने-जने बांधे
विद्या बुद्धि के गठरिया।
आज सच तो यह है
यहां की सलमा
भले उर्वरा हो
किंतु बंगाल की मिट्टी
अब ऊसर हो गयी है
सारी संवेदनाएं, कल्पनाएं
धूल धूसर हो गयी हैं।
● डॉ. एस. आनंद, वरिष्ठ साहित्यकार, कथाकार, पत्रकार, व्यंग्यकार
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