ओशो के नजरिये से कृष्ण और सुदामा के बीच का मैत्री संबंध

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ओशो

कृष्ण और सुदामा के बीच विशिष्ट मैत्री-संबंध नहीं है, बस मैत्री-संबंध है। यहाँ भी हमारी ही तकलीफ है। हमें लगता है कि तीन मुट्ठी चावल के लिए तीनों लोक का साम्राज्य दे डालना, जरा ज्यादा है। लेकिन सुदामा के लिए तीन मुट्ठी चावल देना जितना कठिन था, कृष्ण के लिए तीन लोकों का साम्राज्य देना उतना कठिन नहीं था। उसका हमें ख्याल नहीं है। सुदामा के पास तीन मुट्ठी चावल भी बहुत बड़ी बात थी, बड़ा मुश्किल था। इसमें अगर दान दिया है तो सुदामा ने ही दिया है। इसमें दान कृष्ण का नहीं है। लेकिन आमतौर से हमें यही दिखाई पड़ता रहा है कि दान दिया है, कृष्ण ने। सुदामा क्या लाया था! तीन मुट्ठी चावल ही लाया था! फटे कपड़े में बाँधकर!

लेकिन हमें पता नहीं कि सुदामा कितनी दीनता में जी रहा था। उसके लिए एक दाना भी जुटाना और लाना बड़ा कठिन था। वहीं कृष्ण के लिए तीन लोक का साम्राज्य देना भी कठिन नहीं था। इसीलिए कोई कृष्ण ने सुदामा पर उपकार कर दिया हो, इस भूल में कोई न रहे। कृष्ण ने सिर्फ रिस्पांस, उत्तर दिया है और उत्तर बड़ा नहीं है। बड़े से बड़ा जो हो सकता था, उतना है। इसीलिए तीन लोक के साम्राज्य की बात कही। बड़ी से बड़ी कल्पना है कवि की, वह यह है कि तीन लोक हैं और तीनों लोक साम्राज्य है। लेकिन एक गरीब ह्रदय के पास, जिसके पास कुछ भी नहीं है, तीन चावल के दाने भी नहीं हैं, वह तीन मुट्ठी चावल ले आया है, उसे हम कब समझ पायेंगे? नहीं, कृष्ण देकर भी तृप्त नहीं हुए हैं। क्योंकि जो सुदामा ने दिया है वह बहुत असाधारण है और जो कृष्ण ने दिया है, उनकी हैसियत के आदमी के लिए बहुत साधारण है। इसीलिए ऐसा मैं नहीं मानता हूँ कि सुदामा के साथ विशेष मैत्री दिखाई गयी है। सुदामा आदमी ऐसा है कि सुदामा ने ही विशेष मैत्री दिखाई है। कृष्ण ने सिर्फ उत्तर दिया है।

जैसा मैंने कहा कि वे मित्र और शत्रु किसी के भी नहीं है। लेकिन सुदामा जैसा मित्र, सुदामा की तरफ से मैत्री का इतना भाव लेकर आये तो कृष्ण तो वैसा ही रिस्पांस करते हैं जैसे घाटियों में हम आवाज लगा दें तो घाटियाँ सात बार आवाज को दोहरा कर लौटा दें। घाटियाँ हमारी आवाज की प्रतिक्षा नहीं कर रही है, न घाटियाँ हमारी आवाज के उत्तर देने के लिए प्रतिबद्ध हैं, न उनका कोई कमिटमेंट है, लेकिन जब हम घाटियों में आवाज देते हैं तो घाटियाँ उसको सात गुना करके लौटा देती हैं। वह घाटियों का स्वभाव है। वह प्रतिध्वनि, वह ईकोइंग घाटी का स्वभाव है। कृष्ण ने जो उत्तर दिया है, वह कृष्ण का स्वभाव है। और सुदामा जैसा व्यक्ति जब सामने आ गया हो और इतने प्रेम की आवाज दी हो, तो कृष्ण उसे अगर हजार गुना करके भी लौटा दें तो भी कुछ नहीं है। वह कृष्ण का स्वभाव है। यह कोई भी कृष्ण के द्वार पर गया, सुदामा का ह्रदय लेकर।

बड़े मजे की बात यह है कि गरीब हमेशा माँगने जाता है, सुदामा देने गया था और जब गरीब देने जाता है तो अमीरी का कोई मुकाबला नहीं। इससे उलटी बात अमीर के साथ घटती है, अमीर हमेशा देने जाता है। लेकिन जब अमीर माँगने जाता है, जैसे बुद्ध की तरह भिक्षा का पात्र लेकर सड़क पर खड़ा हुआ, तब मामला बिल्कुल बदल जाता है, अगर बुद्ध और सुदामा को साथ सोचेंगे तो ख्याल में आ सकेगा। इधर सुदामा गरीब है और देने गया है और बुद्ध के पास सबकुछ है और भीख माँगने चले गये हैं। जब अमीर भीख माँगने जाता है तब अलौकिक घटना घटती है और जब गरीब दान देने जाता है तब अलौकिक घटना घटती है।

ऐसे अमीर तो दान देते रहते हैं और गरीब भीख माँगते रहते हैं, यह बिल्कुल सामान्य घटना है, इसमें कोई विशेष बात नहीं है। सुदामा उसी विशिष्ट हालत में है जिस हालत में बुद्ध का सड़क पर भीख माँगना है। बुद्ध को क्या कमी है कि भीख माँगने जाएं? सुदामा के पास क्या है जो देने को उत्सुक हो गया है ? पागल ही है। बुद्ध भी पागल, वह भी पागल। और देने भी किसको गया है! कृष्ण को देने गया है, जिनके पास सब कुछ है। लेकिन प्रेम यह नहीं देखता कि आपके पास कितना है। आपके पास कितना ही हो तो भी प्रेम देता है। प्रेम यह मान ही नहीं सकता कि आपके पास पर्याप्त है। इसे थोड़ा समझना चाहिये।

ओशो

पुस्तक : कृष्ण स्मृति, प्रवचन नंबर 11 से संकलित

ये हैं कोलकाता के बांगुर स्थित ओशो रामकृष्ण मेडिटेशन सेंटर के संस्थापक ‘स्वामी’ शशिकांत और उनकी पत्नी ‘माँ ‘प्रेम पूर्णिमा। साल 2013 से शुरू हुए इस सेंटर के माध्यम से स्वामी शशिकांत और माँ पूर्णिमा ओशो के सिद्धांत को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हैं। इन्हीं के सौजन्य से हमें ओशो के सिद्धांतों की जानकारी मिली, जिसका एक छोटा हिस्सा उपर साझा किया गया है।
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