गजल संग्रह : हासिल-ए-सहरा नवर्दी
अब तो आँखों में ख़ूँ नहीं आता
फिर भी दिल को सुकूँ नहीं आता
जो हिसार-ए-ख़िरद (अक़्ल का घेरा) में रहते हैं
उनको पास-ए-जुनूँ (दीवानगी का ख़्याल) नहीं आता
उसकी जादू बयानी क्या समझूँ
जब समझ में फ़ुसूँ (जादू) नहीं आता
दिल का रोना दिखाई दे कैसे
नज़र अश्क-ए-दरूँ (अन्दर का आँसू) नहीं आता
इस तबाही के बाद भी लब पर
ज़िक्र-ए-हाल-ए-जबूँ (तबाही की चर्चा) नहीं आता
सच है ‘तालिब’ रियाज़ (अभ्यास) है लाज़िम
शे’र कहना तो यूँ नहीं आता
– मुरलीधर शर्मा ‘तालिब’, संयुक्त पुलिस आयुक्त (अपराध), कोलकाता पुलिस
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