गजल संग्रह : हासिल-ए-सहरा नवर्दी
गर मैं तूफ़ाँ से डर गया होता
पार कैसे उतर गया होता
उसका नक्श-ए-क़दम (पद-चिन्ह) अगर मिलता
मंज़िलों से गुज़र गया होता
कू-ब-कू (गली-गली) यूँ न फिर भटकता मैं
वो जिधर था उधर गया होता
आईना आप अगर उसे देते
उसका चेहरा उतर गया होता
ख़ैर से गाँव में वो ज़िन्दा है
शह् र आता तो मर गया होता
आईना देख कर दिल-ए-‘तालिब’
किरचियों (टुकड़ों) में बिखर गया होता
– मुरलीधर शर्मा ‘तालिब’, संयुक्त पुलिस आयुक्त (अपराध), कोलकाता पुलिस
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