डॉ. एस. आनंद की कलम से व्यंग्य कविता ‘अहसानफरामोश’

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डॉ. एस. आनंद, वरिष्ठ साहित्यकार, कथाकार, पत्रकार, व्यंग्यकार

अहसानफरामोश

कितने नासमझ हैं लोग
जो आज के जमाने में भी
उम्मीद करते हैं
अपने अहसानों के प्रतिदान की।
एक जमाना था
जब कुत्ते भी पोस मानते थे
जिसका खाते थे
उसी का गाते थे।
मगर आज का आदमी
खाता है मगर गाता नहीं
बल्कि दलील देता है
वह सतयुग था
आज कलियुग है
और आज जो
धूर्त्त है, मक्कार है
युग उसी का है।
इसीलिए तो आमिर खान को
भारत से डर लगता है
और टर्की से प्यार है!
ये देश के छुपे रुस्तम हैं
और कहते यारों के यार हैं।

● डॉ. एस. आनंद, वरिष्ठ साहित्यकार, कथाकार, पत्रकार, व्यंग्यकार

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