गजल संग्रह : हासिल-ए-सहरा नवर्दी
ठहरी ठहरी हवा ज़रा सी लगी
चाँद के रुख़ पे कुछ उदासी लगी
रेगज़ारों (रेगिस्तान) की तिश्नगी क्या है
अब के बरसात भी प्यासी लगी
क्या मुहब्बत है क्या अदावत है
हम को दुनिया बड़ी सियासी लगी
खेल क़िस्मत का जिसको समझे थे
वो हक़ीक़त फ़क़त क़यासी (अनुमानित) लगी
अब हया कितनी पस्ती में पहुँची
पैरहन में भी बे-लिबासी लगी
“तालिब-ए-ख़ुश-नवा’ (अच्छी आवाज़ वाला) ये तेरी ग़ज़ल
एक रूदाद-ए-ख़ुदशनासी (ख़ुद को जानने की कथा) लगी
■ मुरलीधर शर्मा ‘तालिब’, संयुक्त पुलिस आयुक्त (अपराध), कोलकाता पुलिस
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