डॉ. एस. आनंद की कलम से व्यंग्य कविता ‘मुझ पर तरस खाओ!’

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डॉ. एस. आनंद, वरिष्ठ साहित्यकार, कथाकार, पत्रकार, व्यंग्यकार

मुझ पर तरस खाओ!

पत्नी ने मन मसोस कर कहा-
मेरी एक बात गौर से सुनो
बार-बार अपने मन में गुनो
फिर भी समझ में न आए
तो सिर तुम्हारा है
उसे जैसे चाहे वैसे धुनो।
मैं एक आखर नहीं बोलूंगी
अपने दिल का राज भी नहीं खोलूंगी।
मैं जानती हूं कि
इस समय कोरोना का पहरा है
राजनीतिक रहस्य गहरा है
तुम चुनाव कब लड़ोगे
किस दिन मेरा पिण्ड छोड़ोगे?
मुझ पर तरस खाओ
जल्दी से बड़ा नेता बन जाओ।

 डॉ. एस. आनंद, वरिष्ठ साहित्यकार, कथाकार, पत्रकार, व्यंग्यकार

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