गजल संग्रह : हासिल-ए-सहरा नवर्दी
हमने देखा है बहुत भीग के हर बारिश में
कर्ब (दुख) कुछ और सिवा (अधिक) होता गया रंजिश (अन-बन) में
मुज़महिल (कमज़ोर) क्यों हुए जाते हैं सितारे सारे
चन्द क़तरे ही बहाये थे कभी लग़ज़िश (ग़लती) में
मेरी क़िस्मत का सितारा जो कहीं डूब गया
आसमाँ अब भी है सरगरदाँ (परेशान) उसी गर्दिश में
अस्ल में कौन हूँ मैं किसके लिए आया हूँ
ज़िन्दगी गुज़री इसी जुस्तजू में, काविश (तलाश) में
हमको हालात की गर्मी ने जलाया इतना
शौक़ जलने का तो हमको भी न था आतिश (आग) में
उसको हर तर् ह भुलाया वो मगर याद रहा
कुछ कमी भी नज़र आई न मिरी कोशिश में
बे-हिसी, कम-नज़री की है अलामत (पहचान) ‘तालिब’
काँप उठते हैं सुख़नवर ज़रा सी लग़जिश़ में
■ मुरलीधर शर्मा ‘तालिब’, संयुक्त पुलिस आयुक्त (अपराध), कोलकाता पुलिस
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