गजल संग्रह : हासिल-ए-सहरा नवर्दी
वक़्त अच्छा जो मिरा था पहले
हर नज़र को मैं भला था पहले
अब कहीं जाके फ़साना समझा
उसके मुँह से न सुना था पहले
सिर्फ़ हम ही न हुए थे पागल
कुछ तो उसको भी हुआ था पहले
है ज़मीं बोस (धरती पर झुकना) इमारत इतनी
इसका सीना भी तना था पहले
ज़िन्दगी खा के थपेड़े गुज़री
हाल इतना न बुरा था पहले
बाद में दिल से गई शीरीनी (मिठास)
ज़ह् र दुनिया ने भरा था पहले
गर्द जब तक न हटी आँखों से
साफ़ ‘तालिब’ न दिखा था पहले
■ मुरलीधर शर्मा ‘तालिब’, संयुक्त पुलिस आयुक्त (अपराध), कोलकाता पुलिस
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