गजल संग्रह : हासिल-ए-सहरा नवर्दी
हर तकल्लुफ़ हम उठाने लग गए
होश उलफ़त में ठिकाने लग गए
हम ज़रा सी देर को चुप क्या हुए
गूंगे सब क़िस्से सुनाने लग गए
खोलकर इक पल में जिसको रख दिया
बांधने में फिर ज़माने लग गए
इश्क़ का सौदा हुआ जब से सवार
नाज़ दुनिया के उठाने लग गए
किस क़दर मजबूर हम भी हो गए
हाँ में उनकी हाँ मिलाने लग गए
जब घड़ी तक वो नज़र उठने लगी
गुफ़्तगु हम भी बढ़ाने लग गए
फूल, फल, शबनम, अनादिल (बुलबुल का बहुवचन) सब के सब
बाग़ को आँखें दिखाने लग गए
वो तो सुनने आये थे ‘तालिब’ ग़ज़ल
मर्सिया (दुख व्यक्त करने वाली कविता) तुम क्यों सुनाने लग गए
■ मुरलीधर शर्मा ‘तालिब’, संयुक्त पुलिस आयुक्त (अपराध), कोलकाता पुलिस
यह भी पढ़ें : ‘ख़ाकी’ की कलम से ‘गज़ल’ की गली (38)
Advertisement