गजल संग्रह : हासिल-ए-सहरा नवर्दी
दरमियाँ सब रास्ते पुरख़म (घुमावदार) हैं अब
तुम कहाँ वो तुम कहाँ हम हम हैं अब
किस के साए में गुज़ारूँ दोपहर
बाग़ में अशजार(एकाधिक पेड़)-ओ-सब्ज़ा (हरियाली) कम हैं अब
चारा-साज़ों (इलाज करने वाले) को मैं क्या इल्ज़ाम दूँ
काम यूँ करते कहाँ मरहम हैं अब
मसलेहत की बेड़ियाँ हैं पाँव में
पा-ब-जौलाँ (क़ैद) हर तरफ़ आदम हैं अब
रौशनी की अब करें किससे उम्मीद
माह-ओ-अंजुम (चाँद-सितारे) बाइस-ए-मातम (दुख का कारण) हैं अब
ईद ‘तालिब’ के मुक़द्दर में कहाँ
ज़िन्दगी में रह गये बस ग़म हैं अब
■ मुरलीधर शर्मा ‘तालिब’, संयुक्त पुलिस आयुक्त (अपराध), कोलकाता पुलिस
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