गजल संग्रह : हासिल-ए-सहरा नवर्दी
ख़ार (कांटा) आए या फिर गुलाब आए
देखिए उसका क्या जवाब आए
उसके रुख़्सार (चेहरा) को छुआ जब भी
आरिज़-ए-गुल (फूल का चेहरा) पे क्यों हबाब (बुलबुला) आए
मुझ में वो गुम हो और मैं उसमें
ख़्वाब आए तो ऐसा ख़्वाब आए
तुझ से पहले जचा न बाद तिरे
रहगुज़र (रास्ता) में कई जनाब आए
बुझ रहा है जो ख़ुद दिया ‘तालिब’
आज शायद वो आफ़ताब (सूरज) आए
■ मुरलीधर शर्मा ‘तालिब’, संयुक्त पुलिस आयुक्त (अपराध), कोलकाता पुलिस
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