गजल संग्रह : हासिल-ए-सहरा नवर्दी
जश्न-ए-गिर्या (रोने का जश्न) मनाती रही रात भर
तीरगी (अन्धेरा) घर सजाती रही रात भर
रेत पर नोक-ए-अंगुश्त (उंगली की नोक) से एक शोख़
नाम लिखकर मिटाती रही रात भर
लज़्ज़त-ए-दर्द भी बढ़ती घटती रही
तिश्नगी (प्यास) आती जाती रही रात भर
देख कर मेरी हालत मिरी कैफ़ियत
बे-बसी मुस्कुराती रही रात भर
इस दवाई का ‘तालिब’ असर ये हुआ
नींद आँखें चुराती रही रात भर
■ मुरलीधर शर्मा ‘तालिब’, संयुक्त पुलिस आयुक्त (अपराध), कोलकाता पुलिस
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