गजल संग्रह : हासिल-ए-सहरा नवर्दी
ज़िन्दगी का निज़ाम (प्रबंध) बाक़ी है
सुब्ह गुज़री है शाम बाक़ी है
मीर साहब का नाम बाकी है
उनका हुस्न-ए-कलाम (काव्य की सुंदरता) बाक़ी है
उम्र गुज़री है चलते चलते यार
और रास्ता तमाम बाक़ी है
जुस्तजू तेरी हर जगह कर ली
हाँ मगर इक मक़ाम बाक़ी है
शाह इक्के व रानी सब तेरे
हाथ मेरे ग़ुलाम बाक़ी है
आज भी हम हैं चूर ज़ख़्मों से
आज भी इतना काम बाक़ी है
ज़िन्दगी छोड़ मेरा पीछा अब
और क्या इन्तिक़ाम बाकी है
ऐ ग़ज़ल तुझ पे जाँ-निसारी (जान क़ुर्बान करना) को
‘तालिब’ ऐसा ग़ुलाम बाक़ी है
■ मुरलीधर शर्मा ‘तालिब’, संयुक्त पुलिस आयुक्त (अपराध), कोलकाता पुलिस
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