‘ख़ाकी’ की कलम से ‘गज़ल’ की गली (27)

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मुरलीधर शर्मा ‘तालिब’, संयुक्त पुलिस आयुक्त (अपराध), कोलकाता पुलिस

गजल संग्रह : हासिल-ए-सहरा नवर्दी

लोग अब आगे निकलने लग गए
हम ज़रा क्या धीरे चलने लग गए

आज का इंसान पत्थर हो गया
पत्थरों के दिल पिघलने लग गए

हम जो प्यासे फिर गये, ये देखकर
सारे दरिया हाथ मलने लग गए

किस क़दर पोशीदा थीं चिंगारियाँ
बर्फ़ के अरमाँ उबलने लग गए

हौसला क्या इन चिराग़ों को मिला
आँधियों में भी वो जलने लग गए

हाथ तुमने क्या दिया था हाथ में
पाँव से कांटे निकलने लग गए

आज फिर लहजा बहुत है मुख़्तलिफ़
आज फिर मौसम बदलने लग गए

धूप की जादूगरी कुछ देखिए
साए कुछ आँखों में खुलने लग गए

हो रहा है तज़किरा (वर्णन) क़ातिल का जब
आप क्यों इतना संभलने लग गए

याद, ख़ुशबू, ख़्वाब, अरमाँ ‘तालिब’ अब
रास्ते में साथ चलने लग गए

■ मुरलीधर शर्मा ‘तालिब’, संयुक्त पुलिस आयुक्त (अपराध), कोलकाता पुलिस

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