गजल संग्रह : हासिल-ए-सहरा नवर्दी
तपते सहरा (जंगल) में न जलना चाहिए
आपको फूलों पे चलना चाहिए
रास्ता जैसा हो चलना चाहिए
गिरने वालों को संभलना चाहिए
ज़र्द (पीला) चेहरा हो गया है छाँव में
धूप में कुछ तो टहलना चाहिए
चन्द क़तरों ने किया है फ़ैसला
अब तो सूरज को निगलना चाहिए
आज घर से पर्दे में निकले हैं वो
आज मौसम को बदलना चाहिए
छत बहुत नीची है कमरे की यहाँ
आपको कम-कम उछलना चाहिए
पासबानी (पहरेदारी) अक़्ल को मत सौंपिए
दिल जवानी में फिसलना चाहिए
आईने जब मसलेहत (अपने बनाव या बिगाड़ का ध्यान रखना) साज़ी करें
पत्थरों! तुमको उछलना चाहिए
ख़्वाब, दिल, चाहत, अना (अहं), ‘तालिब’ बता
किस इमारत को कुचलना चाहिए
■ मुरलीधर शर्मा ‘तालिब’, संयुक्त पुलिस आयुक्त (अपराध), कोलकाता पुलिस
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