गजल संग्रह : हासिल-ए-सहरा नवर्दी
टूटता क्या है एक ठोकर से
पूछकर देखिएगा पत्थर से
तन्हा-तन्हा थे ये घने बादल
मेरे आँगन में आज आ बरसे
ये अंधेरे हैं घर मिरे मेहमाँ
अब हटा दीजे रौशनी घर से
दर पे आकर बहार क्यों लौटी
बाग़-ए-दिल आज है बहुत तरसे
हादसा फिर कोई न हो ‘तालिब’
आज शायद वो निकलेगा घर से
■ मुरलीधर शर्मा ‘तालिब’, संयुक्त पुलिस आयुक्त (अपराध), कोलकाता पुलिस
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