गजल संग्रह : हासिल-ए-सहरा नवर्दी
रोज़ आती नहीं हंसी ‘तालिब’
सबको पड़ता है रोना भी ‘तालिब’
हर जगह थी रौशनी ‘तालिब’
फिर भी भटका कभी कभी ‘तालिब’
एक लम्हा नहीं रुकी ‘तालिब’
कैसी मेहमान थी ख़ुशी ‘तालिब’
इम्तिहाँ जब तलक नहीं आता
तब तलक है ये दोस्ती ‘तालिब’
खा चुकी होगी अब तलक ज़ुल्मत (अन्धेरा)
मेरे हिस्से की रौशनी ‘तालिब’
बनते-बनते कहीं न बन जाए
पैकर-ए-फ़िक्र-ओ-आगही (सोच एवं ज्ञान का रूप) ‘तालिब’
ज़िन्दगी किस तरह से गुज़रेगी
एक पल भी हो जब सदी ‘तालिब’
■ मुरलीधर शर्मा ‘तालिब’, संयुक्त पुलिस आयुक्त (अपराध), कोलकाता पुलिस
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