गजल संग्रह : हासिल-ए-सहरा नवर्दी
कोई हमदर्द कब नहीं मिलता
जब ज़रूरत हो तब नहीं मिलता
एक बन्दा तो क़ायदे का मिले
ग़म नहीं मुझको रब नहीं मिलता
तोड़ने पड़ते हैं दर-ओ-दीवार
कोई दरवाज़ा जब नहीं मिलता
जिससे मिलता हूँ झुक के मिलता हूँ
बा-अदब बे-अदब नहीं मिलता
शह् र-ए-दिल में ख़ुलूस का सामाँ
आगे मिलता था अब नहीं मिलता
क्यों समुन्दर की तह में जाकर भी
तिश्नगी का सबब नहीं मिलता
तालिब-ए-फ़न (कला प्रेमी) को फ़न मिले ‘तालिब’
ये हुनर बे-तलब नहीं मिलता
■ मुरलीधर शर्मा ‘तालिब’, संयुक्त पुलिस आयुक्त (अपराध), कोलकाता पुलिस
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