सभी रो रहे हैं
देखता हूं कि सभी रो रहे हैं
आंसुओं से आंखें धो रहे हैं।
मैंने पूछा-ऐसा क्या हो गया?
किस बात पर आ रहा है रोना
उसने कहा-
देश में बढ़ता जा रहा है कोरोना।
जीवन-मृत्यु का चल रहा है खेल
सारी सरकारी मशीनरी हो गयी है फेल।
आदमी, आदमी से बना रहा है दूरी
भला ,यह कैसी है मजबूरी?
बिखर रहा है हमारा समाज
कल से भी बदतर हो गया है आज।
मैंने कहा-
जीना है तो दूर ही रहो
अभी कुछ दिन मजबूर ही रहो
यह खतरनाक बीमारी है
सरकार की भी लाचारी है
आखिर वह करे तो क्या करेे
किस-किस के लिए मरे?
● डॉ. एस. आनंद, वरिष्ठ साहित्यकार, कथाकार, पत्रकार, व्यंग्यकार
यह भी पढ़ें : डॉ. एस. आनंद की कलम से व्यंग्य कविता ‘सावन की घटा’
Advertisement