तुकबंदी!
कवि हो तो कविता पढ़ो
अपनी तारीफ में हिमालय न गढ़ो
कविता पढ़ने का लोगे दाम
तुम्हारी प्रशस्ति से हमें क्या काम?
जब तुम कविता पढ़ते हो
शब्दों और भावों को गढ़ते हो
गूंजता है वन्स मोर
होता है बहुत ज्यादा शोर
हकीकत मैं जानता हूं कि
तुम कवि नहीं हो चुटकुलेबाज
क्या ग़लत है जनता की आवाज?
तुम करते हो केवल तुकबंदी
मंचों पर भी गुटबंदी
इसीलिए तो तुम हिट हो
सारे कवियों में सबसे अधिक फिट हो!
● डॉ. एस. आनंद, वरिष्ठ साहित्यकार, कथाकार, पत्रकार, व्यंग्यकार
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