जीवन
तुम जीवन को
जो भी कह लो
वह उसे एक दैनिक अखबार
ही मानता है
जो हर सुबह
अपनी सुर्खियां पढ़ाने के बाद
किसी चायघर के
टेबल पर फेंक दिया जाता है
दिन भर उठाता है जूठन के बोझ को
झेलता है चाय के बदनुमा दाग को
और शाम होते-होते
समर्पित हो जाता है आग को।
● डॉ. एस. आनंद, वरिष्ठ साहित्यकार, कथाकार, पत्रकार, व्यंग्यकार
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