फिर बैतलवा डाल पर!
कांग्रेस में अध्यक्ष पद को लेकर
छिड़ा था घमासान
कुछ वफादारों ने
सिर पर उठा लिया था आसमान
चीख-चिल्लाहट हुई
नये अध्यक्ष के आने की आहट हुई।
मगर शाम होते-होते
खेल खतम, पैसा हजम
नाटक का हुआ पटाक्षेप
मिट गए सारे आक्षेप।
सबने मिलकर गया
हम पंछी एक डाल के
हम गांधी परिवार को नहीं छोड़ेंगे
यह रिश्ता नहीं तोड़ेंगे।
खत्म हो गया नाटक
पार्टी में नहीं है कोई भी लायक
सबकी नजरें टिक गयीं
सियासत के जाल पर
और इस बार भी वही हुआ कि
फिर बैतलवा डाल पर।
◆ डॉ. एस. आनंद, वरिष्ठ साहित्यकार, कथाकार, पत्रकार, व्यंग्यकार
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