व्यंग्य कविता
आदमी की सूरत
जब से उसने
अपनी सूरत दिखाई
सच कहता हूँ भाई
मेरा खाना, पीना,सोना
दुश्वार हो गया है
आदमियों से नफ़रत
और जानवरों से प्यार हो गया है।
यह आदमी तो है
इतना मैं जानता हूँ
इसकी सूरत को
जन्मान्तरों से पहचानता हूँ।
यह पागल कुत्तों की
तरह काटता है
अपने मतलब के लिए
तलवे चाटता है
घर के कुत्ते भी पोस मानते हैं
जिसका खाते हैं, उसी का गाते हैं
मगर यह आदमी तो
जूता, चप्पल, अण्डे, डण्डे
सब कुछ खा लेता है
पता नहीं, कैसे पचा लेता है?
यही सोचकर मैं हूँ हैरान
पशुओं से भी बदतर
हो गया है इन्सान।
● डॉ. एस. आनंद, वरिष्ठ साहित्यकार, कथाकार, पत्रकार, व्यंग्यकार
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