व्यंंग्य चौपदा
पगडण्डी
पगडंडी जो दीख रही है
मेरे गांव की सड़क रही है
मौसम का मिजाज है बदला
जाड़े में बिजली कड़क रही है।
जब से किया है मंत्री जी ने
एक बड़े पुल का उद्घाटन
उसकी परिणति सोच-सोच के
आंख सुबह से फड़क रही है।
● डॉ. एस. आनंद, वरिष्ठ साहित्यकार, कथाकार, पत्रकार, व्यंग्यकार
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