दीपावली : आस्था, परंपरा व आधुनिकता का संगम – प्रदीप ढेडिया

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दुनिया के अधिकांश हिस्सों में जब भी त्यौहारों का मौसम आता है, एक अजीब सी उमंग और उत्साह का वातावरण बन जाता है। भारत में दीपावली का त्यौहार विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। यह न केवल हिन्दू धर्म के अनुयायियों का प्रमुख पर्व है, बल्कि भारतीय संस्कृति का एक अमूल्य हिस्सा भी है। दीपावली का अर्थ है ‘दीपों की पंक्ति’ और यह अंधकार से प्रकाश की ओर जाने का प्रतीक है। मगर समय के साथ यह पर्व अपनी पुरानी आस्था और परंपराओं से कहीं दूर जा पहुंचा है।

दीपावली की शुरुआत भगवान राम के अयोध्या लौटने के साथ हुई थी, जब अयोध्यावासियों ने दीप जलाकर उनके स्वागत में अपना प्रेम और आस्था व्यक्त किया। उस समय यह पर्व केवल एक धार्मिक उत्सव था, जो आस्था, विश्वास और धर्म की भावना को उजागर करता था। दीप जलाना, घरों को सजाना, मिठाईयों का वितरण और एक-दूसरे को शुभकामनाएँ देना, यही इस पर्व के प्रमुख तत्व थे।

हमारी पुरानी परंपरा में दीपावली का त्यौहार परिवार के साथ मनाया जाता था। घर की सफाई की जाती थी, पुराने सामान को बाहर किया जाता था और नये सामान को लाकर घर को सजाया जाता था। यह पर्व घर में सुख, शांति और समृद्धि की कामना करता था। साथ ही, यह पर्व आत्मविश्लेषण और आत्मसुधार की भावना को भी उजागर करता था, जैसा कि ‘दीप’ का अर्थ प्रकाश से है, जो अज्ञानता से ज्ञान की ओर प्रगति का प्रतीक है।

समय के साथ-साथ समाज में आए बदलावों ने दीपावली के पर्व को भी प्रभावित किया है। आजकल दीपावली केवल एक धार्मिक पर्व नहीं रह गया है, बल्कि यह एक बड़ा व्यवसाय बन चुका है। बाजारों में इस समय सजावट की वस्तुएं, पटाखे, मिठाईयाँ, कपड़े और उपहारों की भारी बिक्री होती है। जहां एक ओर यह समय खुशी और उत्साह का होता है, वहीं दूसरी ओर यह पर्व बाजारवाद और व्यावसायिकता की ओर भी मोड़ लिया है।

पहले घरों में दीप जलाने की परंपरा थी, अब बड़ी-बड़ी इमारतों और शॉपिंग मॉल्स में भी दीपों की लड़ी सजाई जाती है। यही नहीं, सोशल मीडिया पर भी इस समय खासा हलचल रहती है। लोग अपनी दीपावली की तस्वीरें और वीडियो शेयर करते हैं, जिससे पर्व का स्वरूप अधिक दिखावे और प्रतिस्पर्धा वाला हो गया है। यहां तक कि दीपावली का यह पर्व कभी धार्मिक भावनाओं से जुड़ा था, अब यह एक उपभोक्ता उत्सव बन चुका है, जहां लोग एक-दूसरे से मुकाबला करते हैं कि किसने सबसे ज्यादा दीप जलाए, किसने सबसे महंगे पटाखे खरीदे और किसका घर सबसे ज्यादा सजा हुआ है।

आधुनिकता का प्रभाव अब लोगों की आस्था और परंपरा पर भी साफ देखा जा सकता है। पहले दीपावली का त्यौहार केवल धार्मिक रूप से मनाया जाता था, लेकिन अब यह अधिकतर एक सांस्कृतिक उत्सव बनकर रह गया है। एक ओर जहां लोग आस्था और परंपरा से जुड़ी गतिविधियों में हिस्सा लेते हैं, वहीं दूसरी ओर, जो लोग इस पर्व को एक भौतिकवादी दृष्टिकोण से देखते हैं, वे इसे अधिकतर उपहारों का आदान-प्रदान और लग्ज़री खरीदारी के रूप में मनाते हैं।

आजकल त्योहारों के साथ-साथ प्रतियोगिता भी जुड़ गई है। कौन ज्यादा पटाखे फोड़ सकता है, किसका घर सबसे ज्यादा सजावट वाला है, कौन सबसे अच्छे उपहार देता है—इन चीजों ने त्योहारों के मूल उद्देश्य को कहीं न कहीं हाशिए पर डाल दिया है। साथ ही, यह भी एक प्रश्न खड़ा करता है कि क्या हम सचमुच अपने त्योहारों के असली मायने और उद्देश्य को समझ पा रहे हैं?

हालांकि समय के साथ बदलाव आना स्वाभाविक है, लेकिन यह भी जरूरी है कि हम अपनी परंपराओं और आस्थाओं को बनाए रखें। दीपावली का असली उद्देश्य सिर्फ व्यापार और प्रतिस्पर्धा में नहीं, बल्कि यह है कि हम अपने अंदर की नकारात्मकता को समाप्त करके आत्मसुधार की दिशा में आगे बढ़ें। दीप जलाकर हम अपने जीवन को अंधकार से निकालकर एक नया दिशा देते हैं। यह पर्व हमें यह सिखाता है कि हमें अपने जीवन में संतुलन और शांति बनाए रखनी चाहिए, और साथ ही अपने रिश्तों और समाज में प्रेम और सौहार्द्र की भावना का प्रसार करना चाहिए।

व्यावसायिकता और आधुनिकता के इस दौर में, यह हम पर निर्भर करता है कि हम दीपावली के असली उद्देश्य को किस प्रकार समझें और अपनी जीवनशैली में उसे शामिल करें। हमें चाहिए कि हम इस पर्व को अपनी संस्कृति, परंपरा और आस्था से जोड़ते हुए मनाएं, ताकि यह पर्व हमारे जीवन में सकारात्मक परिवर्तन और खुशहाली ला सके।

दीपावली का पर्व अब पहले की तुलना में काफी बदल चुका है, लेकिन इसके असली उद्देश्य को भुलाया नहीं जा सकता। यह पर्व न केवल अंधकार से प्रकाश की ओर जाने का प्रतीक है, बल्कि आत्मिक शुद्धता और मानसिक शांति की ओर बढ़ने का मार्ग भी दिखाता है। समय के साथ यह त्योहार और उसकी परंपराएं बदलती जा रही हैं, लेकिन हमें यह समझना चाहिए कि बदलाव का अर्थ यह नहीं है कि हम अपनी जड़ें और आस्थाएं भूल जाएं। दीपावली का वास्तविक उद्देश्य हर एक के दिल में दीप जलाने की प्रक्रिया से जुड़ा हुआ है, ताकि हम अंधकार से बाहर निकलकर अपने जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की ओर बढ़ें।

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