‘आईना’ : डा.एस.आनंद

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डॉ. एस. आनंद

आईना

एक दिन आईने ने टोका
सूरत देखने से रोका
बोला-तुम मुझमें रोज क्या देखते हो?
जबकि हर सुबह तुम स्वयं ही
एक नया चेहरा बदलते हो।
मैंने कहा-तुम मुझे ही क्यों रोकते हो?
सुबह-सुबह ही टोकते हो
आईना ठठाकर हंसा
जैसे मैं उसकी बातों में जा फंसा
बोला-क्यों आज दाल नहीं गली?
तुझसे तो तेरी परछाई भली।
-डा.एस.आनंद

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