घर ही छोड़ दूं!
यार! बीवी रोज झगड़ती है
जबरन रोज लड़ती है
कल मेरा मोबाइल तोड़ दिया
आज डायरी को भी छोड़ लिया।
कहती है-
रात-दिन मोबाइल में घुसे रहते हो
अपनेआप को क्या समझते हो?
मैं जुगाड़ करके घर चलाती हूं
बच्चों की भूख मिटाती हूं
और तुम सोकर मोबाइल चलाते हो
झूठ-मूठ का अहसान जताते हो।
बदलो अपना ढंग
नहीं तो कर दूंगी बदरंग
सोचता हूं-
इससे रिश्ता ही तोड़ दूं
या चुपके से घर ही छोड़ दूं!
मुआ कोरोना जो न कराए
अभी आगे कैसा दिन दिखाए?
◆ डॉ. एस. आनंद, वरिष्ठ साहित्यकार, कथाकार, पत्रकार, व्यंग्यकार
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