गजल संग्रह : हासिल-ए-सहरा नवर्दी
निज़ाम उसने बनाए हैं किस कमाल के देख
ऊरूज (उन्नति) देख चुका है तो दिन ज़वाल (पतन) के देख
हर एक गाम (क़दम) पे शीशा बिछा हुआ है तो फिर
यहाँ क़दम भी उठाना ज़रा संभाल के देख
जवाब तू भी किताबों में देखता क्या है
अगर है देखना तेवर मिरे सवाल के देख
अब आईने भी बहुत सख़्त जान होने लगे
यक़ीं न आए तो पत्थर ज़रा उछाल के देख
फिर उस मकान से वीरानियाँ ही टपकेंगी
तू अपने ज़ेह् न से बाहर मुझे निकाल के देख
मिरी नज़र के उजाले हैं कू-ब-कू (गली-गली) ‘तालिब’
ग़ज़ल के शह् र में जलवे मिरे ख़्याल के देख
■ मुरलीधर शर्मा ‘तालिब’, संयुक्त पुलिस आयुक्त (अपराध), कोलकाता पुलिस
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