‘ख़ाकी’ की कलम से ‘गज़ल’ की गली (36)

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मुरलीधर शर्मा ‘तालिब’, संयुक्त पुलिस आयुक्त (अपराध), कोलकाता पुलिस

गजल संग्रह : हासिल-ए-सहरा नवर्दी

नज़र-ए-असदुल्लाह ख़ाँ ग़ालिब

है कौन तुझ से जो वाक़िफ नहीं कि तू क्या है
तिरे बग़ैर ग़ज़ल की भी आबरू क्या है

जिसे तलाश करें जिसकी आरज़ू रक्खें
वो ख़्वाब ही में नहीं है तो जुस्तजू क्या है

वो बात-बात है जिस बात में हो दिल शामिल
ज़बान-ए-दिल से न निकली तो गुफ़्तगू क्या है

बहाओ अश्क इबादत में हो असर पैदा
गुनाह गर नहीं धुलता तो फिर वुज़ू (इबादत से पहले हाथ, मुँह और पाँव धोना) क्या है

हमारा हाल सर-ए-आम हो गया कि नहीं
तुम्ही कहो कि ये हंगामा चार-सू क्या है

तू हमसे दूर बहुत दूर है मगर फिर भी
हमारे जिस्म से लिपटी तिरी ये बू क्या है

वो बुज़दिली को शराफ़त का नाम देते हैं
ख़िलाफ़-ए-ज़ुल्म न खौला तो फिर लहू क्या है

सुख़न शनास (काव्य की परख वाले) बुज़ुर्गों से पूछिए ‘तालिब’
कलाम-ए-हज़रत-ए-‘ग़ालिब’ की आबरू क्या है

■ मुरलीधर शर्मा ‘तालिब’, संयुक्त पुलिस आयुक्त (अपराध), कोलकाता पुलिस

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