व्यंग्य कविता
कुत्ते की दुम
तुम्हारे शब्द
तुम्हारे व्यंग्य
तुम्हारा लेखन
नहीं ला सकता है
इनमें रंचमात्र भी परिवर्तन!
नहीं सुना है आपने?
कुत्ते की दुम सीधी नहीं होती
चाहे उस पर ‘हिमताज’ लगाओ
या ‘महाभृंगराज!’
ये नहीं छोड़ सकते अपनी आदत
और न ही बदल सकते
अपना समाज!
मुझे दुख है मेरे दोस्त!
तुम्हारा श्रम व्यर्थ चला गया
तुम्हारा लेखन खुद ही छला गया।
● डॉ. एस. आनंद, वरिष्ठ साहित्यकार, कथाकार, पत्रकार, व्यंग्यकार
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