डॉ. एस. आनंद की कलम से व्यंग्य कविता ‘ये हमारे केश हैं या…’

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डॉ. एस. आनंद, वरिष्ठ साहित्यकार, कथाकार, पत्रकार, व्यंग्यकार

ये हमारे केश हैं या…

पति ने कहा
तुम्हारे लहराते गेसू
सावन की घटा का
अहसास करा रहे हैं
मैं और तुम दोनों पास आ रहे हैं।
कभी रिमझिम फुहार
कभी बादलों की मनुहार
जब भी कभी बादल फटेगा
तुम्हारे केशों में अटकेगा।
पत्नी ने कहा- धत्
ये हमारे केश हैं
या गोबर्द्धन पर्वत!

-डॉ.एस.आनंद, वरिष्ठ साहित्यकार, कथाकार, पत्रकार, व्यंग्यकार

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