गजल संग्रह : हासिल-ए-सहरा नवर्दी
मैं जुनूँ (दीवानगी) की हद बताना चाहता हूँ
फूँक से सूरज बुझाना चाहता हूँ
पत्थरों के दरमियाँ रहकर भी मैं
आइनों का घर बनाना चाहता हूँ
ज़ख़्म खाकर हौसला निकलेगा क्या
निश्तरों (ज़ख़्म चीरने का औज़ार) को आज़माना चाहता हूँ
इस ज़मीं को मैं मिसाल-ए-आसमाँ ही
चाँद तारों से सजाना चाहता हूँ
ज़िन्दगी आ और ज़रा नज़दीक आ जा
इक फ़साना है सुनाना चाहता हूँ
दूर है मुझ से कहाँ सब रंग-ए-हस्ती (जीवन का रंग)
मैं धनक से घर बनाना चाहता हूँ
ख़ून के आँसू रुलाएं उसकी बातें
और मैं ‘तालिब’ मुस्कुराना चाहता हूँ
– मुरलीधर शर्मा ‘तालिब’, संयुक्त पुलिस आयुक्त (अपराध), कोलकाता पुलिस
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