गजल संग्रह : हासिल-ए-सहरा नवर्दी
ज़ीस्त (जीवन) पर ऐतबार कौन करे
मौत से होशियार कौन करे
सब परस्तार (पूजने वाले) हैं उजालों के
इन अंधेरों से प्यार कौन करे
फिर नए ज़ख़्म को तरसता है
दिल मिरा तार-तार (छिन्न-भिन्न) कौन करे
ना-ख़ुदाओं पे अब भरोसा करूँ?
ये ख़ता बार-बार कौन करे
आँख खुलते ही जाम भर देना
शाम का इन्तिज़ार कौन करे
गुनगुनाता हूँ मैं ग़ज़ल वरना
ज़ख़्म का इश्तिहार कौन करे
आज मजबूर है बहुत ‘तालिब’
यूँ बहाने हज़ार कौन करे
– मुरलीधर शर्मा ‘तालिब’, संयुक्त पुलिस आयुक्त (अपराध), कोलकाता पुलिस
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